Saturday, August 10, 2013

मनुष्य से मनुष्यता तक के सफ़र में/श्रीमती मंजू बृजमोहन सराठे

              
             श्रीमती मंजू बृजमोहन सराठे जी की कविताओं को पढ़ने का सुअवसर मिला। शिक्षा प्रणाली के मूलभूत तत्वों पे आधारित आप की कवितायें जीवन के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं । एक तरह की आकाश धर्मिता इन कविताओं में दिखाई पड़ती है । कविता से मनुष्य-भाव की रक्षा होती है। सृष्टि के पदार्थ या व्यापार-विशेष को कविता इस तरह व्यक्त करती है मानो वे पदार्थ या व्यापार-विशेष नेत्रों के सामने नाचने लगते हैं। वे मूर्तिमान दिखाई देने लगते हैं। उनकी उत्तमता या अनुत्तमता का विवेचन करने में बुद्धि से काम लेने की जरूरत नहीं पड़ती। कविता की प्रेरणा से मनोवेगों के प्रवाह जोर से बहने लगते हैं। तात्पर्य यह कि कविता मनोवेगों को उत्तेजित करने का एक उत्तम साधन है। यदि क्रोध, करूणा, दया, प्रेम आदि मनोभाव मनुष्य के अन्तःकरण से निकल जाएँ तो वह कुछ भी नहीं कर सकता। कविता हमारे मनोभावों को उच्छवासित करके हमारे जीवन में एक नया जीव डाल देती है। हम सृष्टि के सौन्दर्य को देखकर मोहित होने लगते हैं। कोई अनुचित या निष्ठुर काम हमें असह्य होने लगता है। हमें जान पड़ता है कि हमारा जीवन कई गुना अधिक होकर समस्त संसार में व्याप्त हो गया है। यह व्याप्ति भाव बोध आप की कविताओं में सहज रूप से दिखाई पड़ता है और इन कविताओं की सबसे बड़ी शक्ति भी है ।
                कविता या काव्य क्या है? - इस विषय में भारतीय साहित्य में आलोचकों की बड़ी समृद्ध परंपरा है-साहित्य दर्पण में आचार्य विश्वनाथ का कहना है, 'वाक्यम् रसात्मकं काव्यम्' यानि रस की अनुभूति करा देने वाली वाणी काव्य है।पंडितराज जगन्नाथ कहते हैं, 'रमणीयार्थ-प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' यानि सुंदर अर्थ को प्रकट करने वाली रचना ही काव्य है।पंडित अंबिकादत्त व्यास का मत है, 'लोकोत्तरानन्ददाता प्रबंधः काव्यानाम् यातु' यानि लोकोत्तर आनंद देने वाली रचना ही काव्य है । संस्कृत के विद्वान आचार्य भामह के अनुसार "कविता शब्द और अर्थ का उचित मेल" है। "शब्दार्थो सहितों काव्यम्"आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने "कविता क्या है" शीर्षक निबंध में कविता को "जीवन की अनुभूति" कहा है।जयशंकर प्रसाद ने सत्य की अनुभूति को ही कविता माना है ।
               महादेवी वर्मा ने कविता का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कहा कि - "कविता कवि विशेष की भावनाओं का चित्रण है।"प्रसाद ने कामायनी में जिस महाप्रलय का चित्रण किया है वह काल्पनिक होकर भी वास्तविक रूप धारण कर लेता है। वास्तव में कवि की प्रतिभा यत्र-तत्र बिखरे सौन्दर्यको संकलित करके एक नई आनन्दमयी सृष्टि की रचना करती है। हर युग में कवि अपनी कविता के माध्यम से युग सत्य के ही दर्शन कराता है। कविता में सत्य, शिव और सौन्दय्र की ऐसी अलौकिक रस धार प्रवाहित होती है, जो सबको एक समान आनन्दित करती चलती है। कविता समाज को नई चेतना प्रदान करती है, कविता मेरी दृष्टि में मानवता का शाब्दिक स्वरूप है । श्रीमती मंजू बृजमोहन सराठे की कवितायें जीवन में मानवीय मूल्यों के परिमार्जन और परिष्कार का संदेश देती हैं । यह कवि के काव्य भाव का उदात्त रूप है ।
             कविता का सीधा सम्बन्ध हृदय से होता है। कविता में कही गई बात का असर तेज और स्थायी होता है। कविता के दो पक्ष होते हैं। आन्तरिक यानि भाव पक्ष और बाह्य यानि कला पक्ष। सर्वप्रथम कला पक्ष पर विचार करें। कविता को मर्मस्पर्शी बनाने में सार्थक ध्वनि समूह का बड़ा महत्व है। विषय को स्पष्ट और प्रभावशाली बनाने में शब्दार्थ योजना का बड़ा महत्व है। शब्दों का चयन कविता के बाहरी रूप को पूर्ण और आकर्षक बनाता है। कवि की कल्पना शब्दों के सार्थक और उचित प्रयोग द्वारा ही साकार होती है। अपनी हृदयगत भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए कवि भाषा की अनेक प्रकार से योजना करता है ओर इस प्रकार प्रभावशाली कविता रचता है। शब्द शक्ति, शब्द गुण, अलंकार लय तुक छंद, रस, चित्रात्मक भाषा इन सबके सहारे कविता का सौंदर्य संसार आकार ग्रहण करता है। लय और तुक कविता को सहज गति और प्रवाह प्रदान करते हैं। लयात्मकता कविता को संगीतमय और गेय बनाती है जिससे कविता आत्मा के तारों को झंकृत कर अलौंकिक आनन्द प्रदान करती है। कविता में तुक का भी अपना एक अलग स्थान हैं जब किसी छन्द के दो चरणों के अन्त में अत्न्यानुप्रास आता है तो उसे तुक कहा जाता है जिकविता में शब्द चयन तभी सार्थक होते हैं जब सहृदय पाठक के हृदय में रस की प्रतीति हो।मंजू जी की कवितायें पढ़ते हुए हम बड़ी सहजता,सरलता और सरसता के साथ उन कविताओं के साथ मानों यात्रा कर रहे होते हैं ।  
           कविता को शिल्प की दृष्टि से देखने के पश्चात इसके आन्तरिक स्वरूप पर भी विचार करना आवश्यक है। इसे भाव पक्ष भी कहते हैं। कवि के हृदय की कोमल अनुभूतियों का साकार रूप ही कविता है। उसकी भावना का मनोरम साम्राज्य, जिसमें कवि का उद्देश्य झलकता है, वही उसका भाव पक्ष है। कवि की दृष्टि लोकमंगल पर रहती है। कवि कविता द्वारा युगीन सत्य को आकार देता है, समाज को दिशा निर्देश देता है और श्रेष्ठ गुणों और आदर्शो की प्रतिष्ठा करता है।
              कविता का उद्देश्य है नैतिकता, धर्म का सच्चा स्वरूप और राजनीति का शुद्ध रूप प्रतिष्ठित करना। कवि की दृष्टि से समाज को नवीन दृष्टिकोण से विचार करना आता है और जगत के रहस्यों का नया अर्थ बोध होता है। कवित कवि के हृदय का शुद्ध रूप है जिसमें लौकिक जीवन के सुख-दुख, प्रेम, करूणा, क्रोध, घृणा के भाव स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगते हैं। इसे यूँ समझा जा सकता है कि कविता हृदय की तीव्रतम अनुभूतियों की सहज अभिव्यक्ति है। बुद्धि और कल्पना के योग से कवि बड़ी सरलता से बड़ी-बड़ी बातें कह देता है। कविता में निहित नीति व उपदेश सुनने वाले के पूरे जीवन को बदलने की सामर्थ्य रखते हैं। मंजू जी की कवितायें भी ऐसे ही संदेशों से भरी हैं , जैसे कि
              सच कहना,ईमानदारी से चलना ,
              होती अच्छी बात ।
              झूठ बोलना, दगा देना ,
              जिससे बिगड़े बात ।
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             पर्वत से सीखे हम ,
             ऊँचा और निडर बनना ।
             सागर से सीखें हम,
             विचारों में गहराई लाना ।
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                      जन्म से लेकर मरण तक आज के मानव-जीवन का जिन स्थितियों, परिस्थितियों, संबंधों, भावों, विचारों और कार्यों से साहचर्य होता है, उन्हें नई कविता ने अभिव्यक्त किया है। नए कवि ने किसी भी कथ्य को त्याज्य नहीं समझा है। कथ्य के प्रति नई कविता में स्वानुभूति का आग्रह है। नया कवि किसी भी सिद्धांत, मतवाद, संप्रदाय या दृष्टि के आग्रह की कट्टरता में फँसने को तैयार नहीं। संक्षेप में, नई कविता कोई वाद नहीं है, जो अपने कथ्य और दृष्टि में सीमित हो। कथ्य की व्यापकता और सृष्टि की उन्मुक्तता नई कविता की सबसे बड़ी विशेषता है। नई कविता परंपरा को नहीं मानती। मनुष्यों में वैयक्तिक भिन्नता होती है, उसमें अच्छाईयाँ भी हैं और बुराईयाँ भी। नई कविता के कवि को मनुष्य इन सभी रूपों में प्यारा है। उसका उद्देश्य मनुष्य की समग्रता का चित्रण है। नई कविता जीवन के प्रति आस्था की रखती है। मंजू जी ने भी इसी बात को ध्यान में रखकर मामूली से दिखने वालें विषयों पे भी बाल सुलभ सुंदर कवितायें लिखी। जैसे कि –
             
              आया आया भाजीवाला
               ताजी-ताजी भाजी लाया
               तरह-तरह की भाजी लाया
              देखकर सबका मन ललचाया ।

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                      इसी तरह एकदम सहज रूप से आप कवितायें लिखती हैं । सहजता,सरलता और सरसता आप की उपदेशात्मक कविताओं को भी एक लय,माधुर्य प्रदान करती हैं । आप की कविता मनुष्य से मनुष्यता तक के सफ़र में आदर्शों और मूल्यों की काव्यगत परंपरा का एक उदात्त रूप है । आप को इन कविताओं के लिए बधाई ।
                                           विजय नारायण पंडित
                                           जोशीबाग, कल्याण
                                           Vijaynarayanpandit.blogspot.com
                                           vijaynarayanpandit@gmail.com

                         

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